शब्द विचार (Morphology)
शब्दः- एक या अनेक वर्णों की सार्थक व स्वतंत्र ध्वनि ही शब्द है। प्रयोग और अर्थ की दृष्टि से यह भाषा की सार्थक लघु इकाई है।
शब्दों का वर्गीकरणः-
- स्त्रोत के आधार पर
- रूपान्तर के आधार पर
- प्रयोग के आधार पर
- अर्थ के आधार पर
(क) स्त्रोत के आधार पर छः भेद हैं-
- तद्भव,
- तत्सम,
- देशज ,
- विदेशज ,
- अनुकरणात्मक,
- द्विज।
1. तद्भवः– तद् + भव शब्द का अर्थ है उससे होना या बनना। संस्कृत के वे शब्द जो हिन्दी में कुछ बदले हुए रूप में प्रयोग किए जाते हैं तद्भव कहलाते हैं। हिन्दी में अनेक शब्द ऐसे हैं जो निकले तो संस्कृत से ही हैं पर प्राकृत , अपभ्रंश पुरानी हिन्दी आदि से गुज़रने के कारण आज परिवर्तित रूप में मिलते हैं, तद्भव शब्द कहलाते हैं।
2. तत्सम्ः- तत् + सम = उसके समान अर्थात् संस्कृत के समान। हिन्दी में अनेक शब्द संस्कृत से सीधे आए हैं और आज भी उसी रूप में प्रयोग किए जा रहे हैं। अतः संस्कृत के ऐसे शब्द जिसे हम ज्यों-का-त्यों प्रयोग में लाते हैं तत्सम शब्द कहलाते हैं। जैसे- अग्नि, वायु, माता, पिता आदि।
3. देशजः- देश + ज = देश में जन्मा। अतः ऐसे शब्द जो क्षेत्रीय प्रभाव के कारण परिस्थिति व आवश्यकतानुसार बनकर प्रचलित हो गए हैं, देशज या देशी शब्द कहलाते हैं- जैसे- थैला, गड़बड़, लोटा, पगड़ी, दाल, रोटी आदि।
4. विदेशजः– ये शब्द संस्कृत से अतिरिक्त अन्य भाषाओं से आए हैं। जैसे अरबी, फारसी, अंग्रेजी आदि। हिन्दी में फारसी शब्दों की संख्या लगभग 3500, अंग्रेजी शब्दों की संख्या 3000 तक है एवं अरबी शब्दों की संख्या 2500 तक है।
जैसे- इनाम, औरत, दुनिया (अरबी)
आफ़त, दफ़तर, सितार (फारसी)
कोर्ट, जज, काॅपी, पेन (अंग्रेजी)
5. अनुकरणात्मक/ध्वन्यात्मकः- कुछ शब्दों का स्रोत कोई ध्वनि, उस ध्वनि के अनुकरण के आधार पर बनाये जाने वाले शब्द है, अनुकरणात्मक शब्द कहलाते हैं; फटफट, खट-खट, धड़ाधड़, झुनझुना, हिनहिनाना, चहचहा आदि शब्द इसी प्रकार के शब्द हैं।
6. द्विज/संकरः– जो शब्द भिन्न-भिन्न भाषाओं के शब्दों के मिश्रण से बनते हैं, द्विज /संकर शब्द कहलाते हैं। जैसे रेल + गाड़ी= रेलगाड़ी, लाठी +चार्ज = लाठीचार्ज, पान + दान = पानदान आदि शब्द हिंदी और अंग्रेजी शब्दों के मिश्रण से बने हैं।
(ख) रचना के आधार पर
एक शब्द से दूसरा शब्द बनाने की प्रक्रिया को रचना (व्युत्पति) कहते हैं। इसके तीन भेद हैं:- 1. रूढ़, 2. यौगिक, 3. योगरूढ़
- रूढ़ः– जिन शब्दों के सार्थक खंड न हो सके और जो अन्य शब्दों के मेल से न बने हों उन्हे रूढ़ शब्द कहते हैं जैसे- दिन, घर, घोड़ा, हरा।
- यौगिक:- यौगिक का अर्थ है-मेल से बना हुआ। जो शब्द दो या दो से अधिक शब्दों से मिल कर बनता है, उसे यौगिक कहते हैं जैसे- विज्ञान (वि+ज्ञान), सामाजिक (समाज+ इक)
(यौगिक शब्दों की रचना तीन प्रकार से होती है- उपसर्ग, प्रत्यय और समास से।)
- योगरूढ़:- ये शब्द दो शब्दों के योग से बने होते हैं परन्तु इनका प्रयोग किसी वस्तु विशेष के अर्थ में रूढ़ होता है। जैसे- जलज (कमल), जलद़ (बादल)
(ग) रूप/प्रयोग के आधार पर
प्रयोग के आधार पर शब्द दो प्रकार के होते हैं – विकारी व अविकारी।
- विकारी शब्द:- वे शब्द जिनमें लिंग, वचन व कारक के आधार पर मूल शब्द का रूपान्तरण हो जाता है, विकारी शब्द कहलाते हैं। जैसे- संज्ञा, सर्वनाम, विशेषण, क्रिया शब्द विकारी शब्द हैं।
- अविकारी शब्द:- जिन शब्दों का प्रयोग मूल रूप में होता है और लिंग वचन व कारक के आधार पर उनमें कोई परिवर्तन नहीं होता अर्थात् जो शब्द हमेशा एक से रहते हैं जैसे-आज, में, और, आहा आदि।
सभी प्रकार के अव्यय शब्द अविकारी शब्द होते हैं।
1. क्रिया विशेषण अव्यय
2. संबंध बोधक अव्यय
3. विस्मयादिबोधक अव्यय
4. समुच्च्यबोधक अव्यय
(घ) अर्थ के आधार पर
‘शब्द’ भाषा की अर्थ के स्तर पर लघुत्तम स्वतंत्र इकाई है किन्तु शब्द तथा अर्थ का प्रायः ऐसा अपरिवर्तनीय संबंध नहीं होता कि एक शब्द का एक ही अर्थ रहे। अर्थ के आधार पर शब्दों के चार भेद हैं।
- एकार्थी 2. अनेकार्थी 3. विपरीतार्थी 4. सामानार्थी
- एकार्थी शब्द:- जिन शब्दों का केवल एक ही अर्थ होता है एकार्थी शब्द कहलाते हैं। व्यक्तिवाचक संज्ञा के शब्द इसी के अंतर्गत आते हैं – गंगा, यमुना
- अनेकार्थी शब्द:– जिन शब्दों के एक से अधिक अर्थ होते हैं अनेकार्थी शब्द कहलाते हैं जैसे श्लेष और यमक अलंकार इन्ही शब्दों पर आधारित होते हैं। जैसे -हार, पास, कनक, फल
- विपरीतार्थी/विलोम शब्द:- जो शब्द विपरीत अर्थ का बोध कराते हैं, विपरीतार्थी शब्द कहलाते हैं। जैसे- सच-झूठ, दिन -रात, पाप- पुण्य, जय-पराजय
- समानार्थी/पर्यायवाची शब्द:– यह अनेकार्थी शब्द से उल्टा है अनेकार्थी में एक शब्द के अनेक अर्थ होते हैं और समानार्थी में एक ही अर्थ को बताने वाले अनेक शब्द होते हैं। जैसे- जल, नीर, सलिल